देश में समाजवाद एवं धर्मनिरपेक्षता को लेकर के एक बार फिर से नई बहस आरएसएस ने छेड़ दी है। यह बहस आरएसएस और भाजपा के उसी नॉरेटिव का हिस्सा है जो हिंदू राष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए वह चलाती है। दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में आरएसएस के राष्ट्रीय महासचिव ने संविधान के प्रस्तावना से समाजवाद तथा धर्मनिरपेक्षता शब्द हटाने की बात कही उसके बाद उनके समर्थन में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ-साथ भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी इस बात को दोहराया। आरएसएस संविधान के इस 42 वें संशोधन का विरोध करते रहा है। हालांकि आरएसएस तो संविधान का ही विरोध करते रहा है।

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, आपातकाल पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आरएसएस महासचिव होसबोले ने कहा, ‘बाबा साहब आंबेडकर ने जो संविधान बनाया, उसकी प्रस्तावना में ये शब्द कभी नहीं थे. आपातकाल के दौरान जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, संसद काम नहीं कर रही थी, न्यायपालिका लंगड़ी हो गई थी, तब ये शब्द जोड़े गए.’
होसबोले के इस बयान के बाद विपक्ष आलोचना कर रहा है। विपक्ष संविधान बदलने तथा इसे खत्म करने के आरोप आरएसएस और भाजपा पर लगा रहा है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि आरएसएस मनुस्मृति को मानने वाले लोग हैं। कांग्रेस के साथ साथ भाकपा माले, सीपीएम सहित कई अन्य विपक्षी दलों ने इस बयान का कड़ा विरोध किया है।
इंडियन यूथ कांग्रेस की कर्नाटक कानूनी प्रकोष्ठ के सदस्यों ने आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले के खिलाफ़ शिकायत दर्ज कराई है। शिकायतकर्ता यूथ कांग्रेस के प्रतिनिधि श्रीधर एमएम ने कहा, “मैं यह शिकायत भारत के संविधान की पवित्रता को बनाए रखने और सार्वजनिक व्यवस्था तथा संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में दर्ज करा रहा हूं।” उन्होंने आगे कहा, “ये टिप्पणियां केवल वैचारिक नहीं हैं, बल्कि जानबूझकर की गईं, उकसाने वाली और खतरनाक हैं।”
शिकायत में कहा गया है कि होसबाले का भाषण भारतीय न्याय संहिता के कई प्रावधानों का उल्लंघन करता है और यह “धार्मिक समुदायों को हाशिए पर धकेलने और अशांति को बढ़ावा देने का प्रयास” है। शिकायतकर्ता ने जोर देकर कहा कि “ये संरक्षित राजनीतिक अभिव्यक्ति नहीं हैं, बल्कि संवैधानिक उलटफेर के लिए उकसावे का काम है, जो दंडनीय अपराधों की श्रेणी में आता है।”