निशाने पर शांति की आवाज़: सोशल मीडिया और पितृसत्तात्मक ट्रोलिंग

भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव और सैन्य कारवाई का प्रयोग भाजपा ने देशभर में राष्ट्रवाद की बहस को हवा देने के लिए किया है. लेकिन इस बहस का प्रयोग राष्ट्रीय एकता की जगह शांति की अपील करने वाले लोगों को निशाना बनाने के लिए किया गया। दक्षिणपंथ के निशाने पर वे लोग रहे जिन्होंने युद्ध के खिलाफ शांति की बात की तथा युद्धोंमाद के दुष्परिणाम को रेखांकित किया. इसमें सबसे ज्यादा निशाने पर रहीं महिलाएं जिन्होंने युद्ध को मानवता के खिलाफ़ मानते हुए इसे कटघरे में खड़ा किया। जो राजनीति के वाद-विवाद से दूर सिर्फ अपना पक्ष रख रही थीं उन्हें भी सोशल मीडिया के दक्षिणपंथी भीडतंत्र ने नहीं बख्शा. पहलगाम हमले में पीड़ित महिलाएं भी ट्रोलिंग की शिकार हुई।

हम बात कर रहे हैं उन नामों की जो पिछले कुछ दिनों में काफी चर्चित रहे इन्हें कम्युनल सिंड्रोम से ग्रस्त ट्रॉल्स के नफरत का शिकार होना पड़ा। इस कड़ी में विदेश सचिव विक्रम मिश्री, पहलगाम में शहीद लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी नरवाल, लोकगायिका नेहा सिंह राठौर, एक्टिविस्ट लेखिका अरुंधति रॉय, लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर डॉ मादरी काकोटी, उत्तराखंड की शैली नेगी सहित सैकड़ो छोटे बड़े नाम शामिल हैं।

विदेश सचिव की ट्रोलिंग

विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने 10 मई को भारत पाकिस्तान के बीच सैन्य कारवाई का प्रेस ब्रीफ करते हुए कहा कि “पहलगाम हमले का मकसद था कि कश्मीर के विकास और प्रगति को नुकसान पहुंचाकर पिछड़ा बनाए रखा जाए. पहलगाम हमले का यह तरीका जम्मू-कश्मीर समेत देश के बाकी हिस्सों में सांप्रदायिक दंगे भड़काने के उद्देश्य से प्रेरित था.” इस बयान के बाद उनकी सोशल मीडिया ट्रोलिंग बढ़ गई और यह तब और ज्यादा हो गया जब उन्होंने भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध की सीजफायर की घोषणा की। विक्रम मिश्री को अपना X अकाउंट प्रोटेक्ट करना पड़ा।और अभी भी प्रोटेक्टेड ही है।

नफरत की दुकान चला रहे आतंकी ट्रोल्स ने उन्हें निशाने पर ले लिया. “देशद्रोही,” “गद्दार,” “पाकिस्तानी एजेंट” ये शब्द ट्रेंड करने लगे. यहां तक कि ट्रोल्स ने उनके परिवार, विशेष रूप से उनकी बेटी तक को नहीं बख्शा. सोशल मीडिया पर उनकी बेटी को लेकर ऐसे भद्दे और यौन हिंसक कमेंट्स किए गए जिन्हें सार्वजनिक मंच पर दोहराना तक मुश्किल है. यहां तक कि ट्रोल आर्मी ने उनके कॉन्टैक्ट डीटेल्स भी सार्वजनिक कर दिए.

यह पितृसत्तात्मक सोच है, जहां किसी पुरुष को चुप कराने के लिए उनके परिवार की महिलाओं को निशाना बनाया जाता है.

अब देश में शांति की बात करना भी अपराध है?

पहलगाम हमले में मारे गए लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी नरवाल ने आतंकियों की सजा के साथ-साथ देश में शांति और इंसानियत की अपील की. मुस्लिम घृणा प्रचार में लगे ट्रोल्स को को यह अपील रास नहीं आई और इस भीडतंत्र ने उनका जमकर चरित्र हनन किया.शादी को महज 6 दिन के बाद ही पहलगाम आतंकी हमले में लेफ्टिनेंट विनय नरवाल यानी हिमांशी के पति की जान चली गई और अभी उनकी मौत को 10 दिन भी नहीं हुए थे कि अपने ही देश के सोशल मीडिया आतंकियों द्वारा हिमांशी को भी डरावने ऑनलाइन एब्यूज का सामना करना पड़ा.

हिमांशी को जेएनयू की छात्रा होने के आधार पर “प्रो-पाक,” “इस्लामिक एजेंट,” और “लाइमलाइट की भूखी” तक कहा गया.कुछ ने तो यहां तक लिखा:“पति की मौत के बदले पैसे और प्रॉपर्टी हड़प लेगी.” “लगता है मुस्लिम प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या करवाई है.”इसका मतलब साफ है अगर आप एक औरत हैं और आप नफरत के खिलाफ खड़ी होती हैं, आप अपना ओपिनियन शेयर करती हैं तो आपको “चरित्रहीन” बना दिया जाएगा.सोचिए ये पितृसत्तात्मक भीड़ कितनी खतरनाक है, और इनमें इतनी हिम्मत कैसे आ रही होगी? क्योंकि इनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया जाता? आखिर ये महिला विरोधी भीड़ पनपती कहां से है?ये वही पितृसत्तात्मक ट्रोल्स हैं, जो महिलाओं की किसी भी आज़ाद आवाज को या तो राष्ट्रद्रोह से जोड़ते हैं या यौन टिप्पणी से दबाते हैं.

नेहा सिंह राठौर और अरुंधति रॉय को ट्रॉलर्स ने बनाया निशाना

लोकगायिका नेहा सिंह राठौर और लेखिका अरुंधति रॉय भी इन ट्रोल गैंग के नफरत का शिकार बनी। जहाँ नेहा ने एक गीत के ज़रिए युद्ध की राजनीति पर सवाल उठाए, वहीं अरुंधति ने युद्ध के मानवीय पहलुओं को सामने रखा जिसके बाद इनके खिलाफ ऑनलाइन हेट कैम्पेन चलाया गया. “कमीनी,” “गद्दार औरत,” “अरेस्ट करो,” जैसे शब्दों से उनकी सोशल मीडिया भर गई.नेहा सिंह के खिलाफ कमेंट्स में लोगों ने उनके शरीर, कपड़ों और आवाज़ तक को गाली दी. यह सिर्फ विरोध नहीं था यह एक योजनाबद्ध पितृसत्तात्मक हमला था.

सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ खड़े होने पर ट्रोलिंग

नैनीताल में जब भीड़ एक नाबालिग के यौन शोषण के बहाने मुस्लिम समुदाय की दुकानों पर हमला कर रही थी, तब शैली नेगी अकेली महिला जिन्होंने साहस दिखाते हुए सामने आकर इस सांप्रदायिक हिंसा का विरोध किया. वीडियो वायरल हुआ और तारीफ भी हुई, लेकिन जल्द ही सोशल मीडिया पर उन्हें गालियां मिलने लगीं. उन्हें “कौम विरोधी,” “टुकड़े टुकड़े गैंग” की एजेंट कहा जाने लगा.कई लोगो ने लिखा: “नैनीताल की ‘देसी गार्जियन ऑफ मुस्लिम्स’.” “इतनी सहानुभूति है तो क्यों नहीं निकाह कर लेती किसी के साथ.”सवाल ये है कि क्या अब देश में शांति की बात भी नहीं कर सकते अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकते? क्या सत्ता से सवाल करना गुनाह है?

आखिर कब कम्युनल सिंड्रोम से ग्रस्त इन आतंकियों के खिलाफ एक्शन ली जाएगी?

ये घटनाएं दिखाती हैं कि सोशल मीडिया अब केवल ट्रोलिंग का मंच नहीं रहा, यह एक डिजिटल हथियार बन चुका है खासकर उन महिलाओं के खिलाफ, जो बोलना जानती हैं जो व्यवस्था से सवाल करती हैं. जो सामाजिक और राजनीतिक रूप से पुरुषों के बराबर भागीदारी दिखा रही हैं। देश विरोधी गतिविधियों तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर यूट्यूब चैनलों को बंद करने वाली सरकार ने इस तरह की हिंसा के खिलाफ़ कोई कदम नहीं उठा रही है। जाहिर है राजनीतिक रूप से इसका फायदा किसको मिलता है। आईटी सेल के जरिए पिछले कुछ वर्षो में बीजेपी ने सोशल मीडिया पर इस इकोसिस्टम को सचेतन निर्मित किया है।

लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं

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