एक तरफ जब बोध गया के महाबोधी मंदिर में बीटीएमसी एक्ट 1949 को रद्द करने तथा महाबोधी मंदिर को ब्राह्मणों के कब्जे से मुक्त करने को ले कर आंदोलन चल रहा है,उसी वक्त बिहार सरकार ने गया शहर का नाम बदलकर गया जी करने का फैसला लिया है। इस वक्त में लिए गए इस फ़ैसले को ले कर कई तरह की बहस जारी है। अभी तक नाम बदलने का काम भाजपा ही किया करती थी।लेकिन बिहार के इस चुनावी साल में नीतीश कुमार की सरकार के इस फ़ैसले के बाद उनके राजनीतिक रास्ते को ले कर भी कई बाते कही जाने लगी है।
बिहार सरकार की ओर से दी गयी जानकारी में बताया गया है कि राज्य सरकार ने गया नाम बदलकर गयाजी कर दिया है। कैबिनेट की बैठक में इसे मंजूरी दी गई है। इस जानकारी में कहा गया है कि गयाजी के पौराणिक, ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है।
बहुत से लोगों का मानना है कि दरअसल नीतीश कुमार पर भारतीय जनता पार्टी ने जितना शिकंजा कस रखा है यह उसी का नतीजा हो सकता है। गया का नाम बदलने से जहां कुछ पंडों को स्वाभाविक खुशी मिली है वहीं बहुत से लोग यह सवाल भी कर रहे हैं कि क्या यह चुनाव के वक्त हिंदुत्ववादी वोटों को अपनी ओर करने की एक चाल है। यह बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि गया का नाम बदलकर गया जी करने की कोई जोरदार मांग उन पंडों ने भी नहीं की जो श्रद्धा से इसे गया जी कहते हैं।
भारतीय जनता पार्टी के नाम बदलने के पीछे की राजनीति और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार के नाम बदलने के पीछे की राजनीति क्या एक है या अलहदा है? दरअसल भारतीय जनता पार्टी मुगल काल से जुड़े तथा मुस्लिम नामों को बदलती है और उसका नामकरण हिंदुत्व तथा ब्राह्मणवादी वर्चस्व के अनुसार करती है। जैसे इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज किया गया,मुगलसराय स्टेशन का नाम बदलकर आरएसएस के नेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर किया गया।ठीक ऐसे ही देश भर में कई अन्य जगहों के भी नाम बदले गए हैं।
गया का नाम बदलकर गया जी किया गया है। पिंडदान के लिए गया का तीर्थ स्थल प्रसिद्ध है।हिन्दू धर्म में यहां के पिंड दान का महत्व भी है।यह मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। हालांकि गया बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति के लिए भी प्रसिद्ध है। इसी हिन्दू धर्म की ब्राह्मणवादी मान्यता के प्रति श्रद्धा दिखाने तथा गया शहर की पहचान को हिन्दू धर्म के तीर्थस्थल रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से किया गया है। स्वाभाविक है कि जिस गया की पहचाना गौतम बुद्ध की धरती के रूप में है वो पहचान कमजोर पड़ेगी। बोध गया मंदिर में
भाजपा जिस हिंदुत्व की ब्राह्मणवादी सांस्कृतिक वर्चस्व को स्थापित करने के लिए मुस्लिम नामों को का हिन्दू नाम से बदलती है ,ठीक उसी कड़ी में इसको देखना चाहिए। इस नामकरण के पीछे आरएसएस की ही राजनीति छुपी है और अब यह चर्चा उठ खड़ा हुआ है कि क्या नीतीश कुमार सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति के रास्ते चल पड़े हैं। उन्हें अपने सेकुलर छवि की कोई चिंता नहीं रही। सीतामढ़ी में पिपरौना नामक जगह का नाम बदलकर पिपरौना धाम नीतीश सरकार ने किया था। पिपरौना को ले कर कुछ लोगों की मान्यता है कि यह सीता की जन्मस्थली है ।
Good article
Good analysis ,nitish is on path of bjp