RSS से उतनी ही नफरत जितनी पाकिस्तान से”: दरभंगा डिप्टी मेयर नाजिया हसन के बयान पर विवाद, कार्यालय में तोड़फोड़

दरभंगा की उप महापौर नाजिया हसन के एक सोशल मीडिया पोस्ट पर आरएसएस बीजेपी के कार्यकर्त्ताओं ने उनके कार्यालय में घुसकर तोड़ फोड़ किया तथा उनको मारने की भी कोशिश की दरभंगा की डिप्टी मेयर नाजिया हसन ने पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया जिसमें लिखा था कि हम लोग हिन्दू भाई से उतना ही स्नेह रखते हैं जितना मुस्लिम भाई से, हम लोग पाकिस्तान से उतनी ही नफरत करते हैं जितनी #RSS से क्योंकि दोनों 2 नेशन थ्योरी के समर्थक रहे हैं”

नाजिया हसन के इसी पोस्ट से नाराज़ हो कर भाजपा आरएसएस के लोगो ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किया और उनका पुतला दहन किया प्रदर्शनकारी पुतला दहन के बाद उपमेयर नाज़िया हसन के चैम्बर पहुंच जबरन कार्यालय में प्रवेश करने का प्रयास किया, लेकिन नाजिया हसन ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. इसके बाद प्रदर्शन में शामिल आरएसएस बीजेपी कार्यकर्ताओं ने नाज़िया हसन के खिलाफ नारेबाजी करते दफ्तर में लगे नेमप्लेट सहित उनके कार्यालय के बाहर तोड़फोड़ करने लगे.

हमले से डरी हुई उपमहापौर ने पुलिस को फोन कर बुलाया। उसके बाद पुलिस ने मामले में हस्तक्षेप कर नाजिया हसन से ट्वीट डिलीट करवाया और लिखित माफी मंगवाई।
हालांकि नाजिया हसन ने इस मामले पर पुलिस पर जबरदस्ती दबाव डाल के ट्वीट डिलीट करवाने तथा माफी मंगवाने का आरोप लगाया है। नाजिया हसन ने एफआईआर दर्ज कराया है, लेकिन प्राथमिकी की रिसीविंग अभी तक नहीं दी गई है।

क्या है टू नेशन थ्योरी?

भारत पाकिस्तान के बंटवारे से जुड़ा है टू नेशन थ्योरी। टू नेशन थ्योरी के समर्थक आजादी के बाद धर्म के आधार पर दो देश बनाने के समर्थक थें और भारत से अलग पाकिस्तान बनाने की मांग कर रहे थें। मुहम्मद अली जिन्ना इसके सबसे बडे़ समर्थक थें लेकिन कई इतिहासकार जिन्ना के अलावा आरएसएस के नेता और हिंदू राष्ट्र के समर्थक सावरकर को सबसे पहले टू नेशन थियरी देने के वाला मानते हैं।
जिन्ना द्वारा 1939 में द्विराष्ट्र के सिद्धांत के प्रतिपादन के लगभग दो वर्ष पहले ही सावरकर इस आशय के विचार व्यक्त कर चुके थे। उन्होंने हिन्दू महासभा के 1937 के अहमदाबाद में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में अध्यक्ष की आसंदी से कहा- भारत में दो विरोधी राष्ट्र एक साथ बसते हैं, कई बचकाने राजनेता यह मानने की गंभीर भूल करते हैं कि भारत पहले से ही एक सद्भावनापूर्ण राष्ट्र बन चुका है या यही कि इस बात की महज इच्छा होना ही पर्याप्त है। हमारे यह सदिच्छा रखने वाले किन्तु अविचारी मित्र अपने स्वप्नों को ही यथार्थ मान लेते हैं। इस कारण वे सांप्रदायिक विवादों को लेकर व्यथित रहते हैं और इसके लिए सांप्रदायिक संगठनों को जिम्मेदार मानते हैं।

किन्तु ठोस वस्तुस्थिति यह है कि कथित सांप्रदायिक प्रश्न हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सदियों से चली आ रही सांस्कृतिक, धार्मिक और राष्ट्रीय शत्रुता… की ही विरासत है … भारत को हम एक एकजुट (Unitarian)और समरूप राष्ट्र के तौर पर समझ नहीं सकते, बल्कि इसके विपरीत उसमें मुख्यतः दो राष्ट्र बसे हैं: हिंदू और मुस्लिम। (समग्र सावरकर वाङ्गमय, हिन्दू राष्ट्र दर्शन, खंड 6, महाराष्ट्र प्रांतिक हिन्दू सभा पूना, 1963, पृष्ठ 296) इसके बाद 1938 के नागपुर अधिवेशन में उन्होंने पुनः कहा – जो मूल राजनीतिक अपराध हमारे कांग्रेसी हिंदुओं ने इंडियन नेशनल कांग्रेस आंदोलन की शुरुआत में किया और जो अभी भी वे लगातार करते आ रहे हैं वह है टेरीटोरियल नेशनलिज्म की मरु मरीचिका के पीछे भागना और इस निरर्थक दौड़ में आर्गेनिक हिन्दू नेशन को बाधा मानकर उसे कुचलना।

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