तैयब हुसैन पीड़ित : लोक और आधुनिकता का समन्वय

11 मई 2025 को हिंदी भोजपुरी के लेखक तैयब हुसैन पीड़ित हमसे विदा हो गए । उन्होंने 80 वर्ष की उम्र पायी , खूब काम किया परंतु लगता है अभी कई काम अधूरे रह गए हैं । उनका जन्म 16 अप्रैल सन 1945 को सारण ज़िला के मिर्ज़ापुर गाँव में हुआ था। शुरू में वे पटना नगर निगम में क्लर्क की नौकरी की । फिर सोनपुर के बुनियादी विद्यालय में शिक्षक बने । यही से वे जेड. ए. इस्लामिक महाविद्यालय , सीवान में हिंदी के प्राध्यापक बने ।

तैयब हुसैन पीड़ित पहले शोधार्थी थे जिन्होंने भिखारी ठाकुर के ऊपर शोध कार्य किया । भिखारी ठाकुर जनमानस में लोकप्रिय रहे। उनका संकट अकादमी स्तर का था और अभी भी है। आभिजात्य वर्ग उन्हें नाच से अधिक कुछ मानने के लिए तैयार नहीं था , आज भी नहीं है । ऐसी स्थिति में उन पर शोध कार्य करना एक चुनौती पूर्ण कार्य था । अकादमी की जगत में भिखारी ठाकुर को मान्यता दिलवाने में उन्होंने कई कार्य किए । भिखारी ठाकुर पर उनकी तीन पुस्तकें आयी‌ । साहित्य अकादमी से भिखारी ठाकुर पर उनका मोनोग्राफ प्रकाशित हुआ है। हिंदुस्तानी अकादमी से लोकनाटक और भिखारी ठाकुर नाम से पुस्तक प्रकाशित हुयी ।

वे प्रगतिशील विचारधारा से लैस थे। शुरू में वे प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े थे । जीवन के अंतिम दिनों में हुए जन संस्कृति मंच से जुड़ गए थे। एकबार इसके द्वारा आयोजित होनेवाले समानांतर फिल्म फेस्टिवल का उद्घाटन किया ।

हिंदी और भोजपुरी दोनों में उन्होंने लेखन किया । वे लघु पत्र – पत्रिकाओं में बराबर लिखते रहे परंतु उनके पुस्तकों के प्रकाशन में सेवानिवृत्ति के बाद तेजी आयी। वे 2005 में सेवानिवृत हुए। उस समय तक उनकी मात्र दो पुस्तकें बिछऊँतिया और लोक नारायण प्रकाशित हुयी थी।
उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं –

हिंदी भोजपुरी की कृतियां

बिछऊँतिया(भोजपुरी कहानी-संग्रह) 1974, लोक नारायण ( नाटक ) 1999,
भोजपुरी साहित्य के सामाजिक परिप्रेक्ष्य ( आलोचना ) 2008 ,आपन-आपन डर (एकांकी संग्रह) 2009, ईदगाह से आगे (बाल एकांकी संग्रह) 2009,भोजपुरी साहित्य के संक्षिप्त
रूपरेखा।( इतिहास) 2004, भोजपुरी कविता के सामाजिक परिप्रेक्ष्य(आलोचना) 2008,
सुर में सब सुर (गीत,गजल,लोकराग) 2011, अनसोहातो(कविता-संग्रह)-2011, सिद्ध साँप ( कहानी संग्रह)- 2015 ,सिरखार ( रेखाचित्र – संग्रह )
संपादित पुस्तकें –

अजब( हिंदी – भोजपुरी गद्य-पद्य संग्रह) 2004, एक पर एक इगारह (एकांकी संग्रह) 2009, रंगमंच पर मॉरीशस(मॉरीशस के एकांकी संग्रह )2010, भोजपुरी नाटक(तेरह प्रतिनिधि नाटक आ एकांकी) 2011, एगो बड़ परिवार(अनकर कहानी : भोजपुरी के जबानी) 2011

भोजपुरी में उन्होंने ‘ डेग ‘ नाम से पत्रिका निकाली । उनकी कुछ रचनाएँ हिंदी भोजपुरी दोनों में मिलती हैं।

उन्होंने अपने लेखन में हिंदू और मुस्लिम कट्टरपंथियों पर प्रहार किया है । यहाँ वे कबीर को याद दिला देते हैं। तलाक , परदा प्रथा पर उनके लेखन से मुस्लिम कट्टरपंथी नाराज हुए ।

लोककथा , लोक नाट्य , लोक छंद के शिल्प में उन्होंने आधुनिक विचार परोसे । वे लोक साहित्य और आधुनिक चेतना दोनों क्षेत्रों में सक्रिय रहे। लोक साहित्य के बारे में कुछ लोगों की धारणा है कि इसमें पुरानपंथी बातें ही रहती हैं। जबकि सच्चाई ऐसी नहीं है। लोक साहित्य में सामान्य जन का दुख – दर्द अभिव्यक्त हुआ है। लोक साहित्य में प्रतिरोध का स्वर मुखर हुआ है।

उन्होंने नाटक , कहानी, लोकछंद में कविता और आलोचना लिखा । इसके अलावा वे देश – काल के सम – सामयिक मुद्दों से बराबर टकराते रहे ।

वे अपनी मातृभाषा भोजपुरी मानते थे। इसे मान्यता दिलाने के लिए उन्होंने हर तरह से प्रयास किया । उन्होंने भोजपुरी को समृद्ध बनाने के
लिए जिधर कमी देखी उधर कलम चलायी। जब भोजपुरी की पढ़ाई उच्च शिक्षा में शुरू हुई तो अनुवाद की जरूरत महसूस हुई । उन्होंने मुझसे इसकी चर्चा की । उन्होंने और मैंने देश – विदेश की चुनी हुई कहानियों का चयन और भोजपुरी अनुवाद किया । यह पुस्तक ‘ एगो बड़ परिवार ‘ के नाम से अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन से प्रकाशित हुयी । उनके द्वारा लिखे गए रेखाचित्र का संग्रह ‘ सिरखार ‘ नाम से प्रकाशित हुआ। इसी तरह उन्होंने भोजपुरी पढ़ने वाले छात्रों को ध्यान में रख कर भोजपुरी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास लिखा ।
इनके संपादन में भोजपुरी के प्रतिनिधि नाटकों का संग्रह भोजपुरी नाटक के नाम से नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित हुआ। इसमें लोक नाटक के साथ साथ भिखारी ठाकुर , राहुल सांकृत्यायन, रामेश्वर सिंह कश्यप के नाटक संकलित हैं । शुरू में ही अंग्रेजों से टकराने वाले राजा फतेहबहादुर शाही पर उन्होंने गुमनाम नायक फतेहबहादुर शाही नामक नाटक लिखा ।

प्रो.जीतेंद्र वर्मा लेखक,दर्शन साह महाविद्यालय कटिहार में अध्यापक हैं.

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