महाबोधी मंदिर बोध गया में बौद्ध भिक्षु 12 फरवरी से अनशन कर रहे हैं।दुनिया भर के बौद्ध धर्मावलंबी अखिल भारतीय बौद्ध मंच (एआईबीएफ) के नेतृत्व में बौद्ध धर्म के केंद्र बोधगया में विरोध प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं, जहां गौतम बुद्ध ने अपना ज्ञान प्राप्त किया था. देश के कई अन्य हिस्सों में भी इस आंदोलना के समर्थन में आंदोलन शुरू हो चुके हैं।

1949 एक्ट को खत्म करने की कर रहे हैं मांग।
बोधगया मंदिर अधिनियम 1949 एक ऐसा कानून है जो गैर-बौद्धों को महाबोधि महावीर मंदिर पर नियंत्रण की अनुमति देता है, जो सबसे पवित्र बौद्ध स्थल है और जहां साल भर हज़ारों अंतरराष्ट्रीय आगंतुक और तीर्थयात्री आते हैं. इस नियम के तहत इस कमिटी में कुल 8 सदस्य होते हैं जिसमें 4 बौद्ध तथा चार हिंदू होते हैं। इस कमिटी के पदेन अध्यक्ष गया के जिला मजिस्ट्रेट (DM) होते हैं। उनका हिंदू होना जरूरी था। साल 2013 में बिहार सरकार ने इस एक्ट में संशोधन किया और इस बाध्यता को खत्म कर दिया।
इस धरने को ऑल इण्डिया बुद्धिस्ट फोरम संचालित कर रहा है।बौद्ध भिक्षु पहले महाबोधि मंदिर के पास आमरण अनशन पर बैठे थे, लेकिन 27 फ़रवरी को प्रशासन ने इन्हें महाबोधि मंदिर परिसर से हटा दिया.अब महाबोधि मंदिर से तक़रीबन एक किलोमीटर दूर दोमुहान नामक जगह पर ये बौद्ध भिक्षु धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। इस आंदोलन में देश भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी शामिल हो रहे हैं।
अनशनकर्ताओं का कहना है की विश्व के पवित्र महाबोधि महाविहार का वैदिक ब्राह्मणों द्वारा ब्राह्मणीकरण किया जा रहा है, यह तथागत बुद्ध के सिद्धांतों का अपमान है।BTMC के ब्राह्मण सदस्य मुख्य मंदिर में घंटी बजाते हैं और धूप जलाते हैं। यहां बुद्ध की मूर्तियों को पांडवों से जोड़कर प्रस्तुत किया जाता है।”

ऐसा नहीं है कि ये मांग पहली बार उठ रही है. ये विवाद 19वीं सदी में ही शुरू हो गया था. हालांकि तब BT एक्ट नहीं था. लेकिन महाबोधि मंदिर में तब भी बौद्ध धर्म के लोगों को पूर्ण अधिकार नहीं था. आकाश लामा ने बताया, श्रीलंका के नागरिक रहे धर्मपाल नाम के एक बौद्ध भिक्षु ने 1891 में अपनी भारत यात्रा के दौरान पहली बार महाबोधि मंदिर पर बौद्धों के अधिकार की मांग उठाई. उस समय मंदिर पर बोधगया मठ का अधिकार था.1922 में गया में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान बौद्ध भिक्षुओं ने फिर यह मुद्दा उठाया.
आकाश लामा कहते हैं, “महात्मा गांधी ने उस समय कहा कि आजादी के बाद मंदिर बौद्धों को सौंप दिया जाएगा. लेकिन आजादी के बाद 1949 में बोधगया टेंपल एक्ट लागू कर मंदिर का प्रबंधन एक नौ सदस्यीय कमेटी को सौंप दिया गया, जिसमें हिंदुओं का बहुमत है.”
आंदोलन कर रहे बौद्ध अनुयायियों का कहना है कि यहां पर हिंदू धर्म का बहुमत है। मंदिर में स्टाफ भी हिंदू समुदाय से ही अधिक संख्या में हैं। बौद्ध धर्म से जुड़े मूर्तियों को हिंदू धर्म का बताया जाता है। जबरदस्ती शिवलिंग बनाया जा रहा है छेनी से तोड़ तोड़ के। बौद्ध धर्म का यह उद्गम स्थल है और यही बौद्धों का नियंत्रण नहीं है।
बिहार विधानसभा में भी उठे हैं सवाल
बिहार में विधानसभा में चल रहे बजट सत्र में कई विधायकों ने इस आंदोलन के समर्थन में बात रखी तथा बोधगया टेंपल एक्ट 1949 खत्म करने की मांग सरकार से की है। मखदुमपुर से राजद विधायक सतीश कुमार दास तथा डुमराव (बक्सर) से भाकपा माले विधायक अजीत कुशवाहा ने बिहार विधानसभा में एक्ट को खत्म करने की मांग की है।