बिहार: प्राचार्य के 173 पदों पर साक्षात्कार के लिए 156 अभ्यर्थी ही योग्य

बिहार के कॉलेजों में प्राचार्य पदों की नियुक्ति को लेकर गंभीर समस्या सामने आई है। राज्य के 173 संबद्ध कॉलेजों में प्राचार्य पदों को भरने के लिए बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग ने 18 और 19 मार्च को साक्षात्कार आयोजित करने वाल है लेकिन इस प्रक्रिया में यह सामने आया कि योग्य अभ्यर्थियों की संख्या रिक्त पदों से कम है। कुल 298 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था, लेकिन स्क्रीनिंग प्रक्रिया के बाद केवल 156 उम्मीदवारों को ही साक्षात्कार के लिए योग्य पाया गया। इसका मतलब यह हुआ कि 173 रिक्त पदों के बावजूद पर्याप्त संख्या में योग्य अभ्यर्थी नहीं मिल सके। इससे यह संभावना बढ़ गई है कि कई कॉलेजों में प्राचार्य पद रिक्त रह सकते हैं, जिससे कॉलेज प्रशासन और शैक्षणिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

साक्षात्कार प्रक्रिया बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के शैक्षणिक भवन में आयोजित की गई थी। यह प्रक्रिया दो पालियों में संपन्न हुई और इसके लिए विशेषज्ञों की नियुक्ति भी की गई थी। हालांकि, इन विशेषज्ञों के नाम गोपनीय रखे गए। विश्वविद्यालय सेवा आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि साक्षात्कार के बाद चयनित अभ्यर्थियों को उनकी पसंद और विश्वविद्यालयों की आवश्यकता के अनुसार संबद्ध कॉलेजों में नियुक्त किया जाएगा। इस प्रक्रिया के तहत विश्वविद्यालय अपनी जरूरतों के अनुसार चयनित प्राचार्यों को नियुक्त करेंगे।

योग्य अभ्यर्थियों की कमी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक गंभीर समस्या को उजागर करती है। अगर इतने महत्वपूर्ण पद खाली रह जाते हैं, तो कॉलेजों में प्रशासनिक और शैक्षणिक कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। प्राचार्य के बिना न केवल संस्थानों की संचालन व्यवस्था प्रभावित होगी, बल्कि शिक्षकों और छात्रों को भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। यह स्थिति उच्च शिक्षा व्यवस्था में आई गिरावट को भी दर्शाती है। सवाल यह भी उठता है कि आखिर क्यों इतने कम अभ्यर्थी योग्य पाए गए? क्या यह शिक्षा प्रणाली में आई कमजोरी को दर्शाता है, या फिर आवेदन प्रक्रिया में कोई त्रुटि रही?

बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग ने चयनित अभ्यर्थियों को रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से सूचना भेज दी है। अगर किसी अभ्यर्थी को कॉल लेटर नहीं मिला है, तो वे 0612-2211011 पर संपर्क कर सकते हैं। आयोग ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि चयन प्रक्रिया पारदर्शी हो और योग्य उम्मीदवारों को उचित अवसर मिले। लेकिन जब रिक्त पदों की संख्या अधिक हो और योग्य उम्मीदवार कम हों, तो यह समस्या उच्च शिक्षा की व्यवस्था पर गहरा असर डाल सकती है।

बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति पहले से ही कई सवालों के घेरे में रही है। अब जब प्राचार्य पदों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है, तब भी योग्य अभ्यर्थियों की कमी एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है। यदि इस समस्या का समाधान जल्द नहीं निकाला गया, तो आने वाले समय में कई कॉलेजों में प्रशासनिक अड़चनें आ सकती हैं और शिक्षा व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। सरकार और शिक्षा आयोग को इस समस्या पर गंभीरता से विचार करना होगा ताकि भविष्य में उच्च शिक्षा प्रणाली को और मजबूत किया जा सके। योग्य अभ्यर्थियों की संख्या में वृद्धि के लिए शिक्षा नीति में बदलाव की जरूरत हो सकती है, जिससे भविष्य में ऐसी समस्याओं का सामना न करना पड़े।

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