बिहार में एनडीए के 20 वर्षों के शासन के खिलाफ भाकपा माले और ऐपवा का आरोप पत्र

बिहार विधानसभा चुनाव को ले कर हलचल तेज हो गई है।भाकपा-माले और महिला संगठन ऐपवा की ओर से एक संवाददाता सम्मेलन में आज भाजपा-जदयू सरकार के 20 वर्षों के शासन के दौरान महिलाओं की स्थिती पर एक आरोप पत्र जारी किया गया।

आरोप पत्र के मुख्य बिंदु

आरोप पत्र में महिलाओं पर अत्याचार और अपराध में तेज़ी से वृद्धि,पीड़ित महिलाओं को आवश्यक वैधानिक सहायता उपलब्ध नहीं कराना,बेटियों की उपेक्षा,जीविका समूहों और कार्यकर्ताओं के सशक्तीकरण का खोखला प्रचार,माइक्रोफाइनेंस कंपनियों द्वारा उत्पीड़न और बर्बादी,श्रमबल में महिलाओं की कम भागीदारी,कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ भेदभाव,स्कीम वर्कर्स के साथ अपमानजनक व्यवहार और शोषण।असंगठित महिला मजदूरों की उपेक्षा,कृषि मजदूरी में महिलाओं को कम भुगतान,महिला किसानों को पहचान और सरकारी मदद से वंचित रखना,स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली,शिक्षा का लगातार गिरता स्तर,शराबबंदी की आड़ में महिलाओं का उत्पीड़न,रसोई गैस के दामों में निरंतर वृद्धि,सांप्रदायिक हिंसा में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफलता,महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकारों का दमन,महिला आयोग को निष्क्रिय और प्रभावहीन बनाए रखने जैसे बिंदुओं को रेखांकित किया गया है।

आरोप पत्र को जारी करते हुए बिहार विधान परिषद की सदस्य शशि यादव, ऐपवा महासचिव मीना तिवारी, महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष मंजू प्रकाश, रसोईया संघ की नेता सरोज चौबे बाते रखी

ऐपवा महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि बीते दो दशकों में भाजपा-जदयू सरकार महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक न्याय दिलाने में पूरी तरह विफल रही है। आज बिहार में अपराध का ग्राफ चरम पर है। दलित, अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं और छोटी बच्चियों तक को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। सरकार की संवेदनहीनता और लापरवाही के कारण अपराधियों का मनोबल लगातार बढ़ा है।

उन्होंने कहा कि जनांदोलनों के दबाव में सरकार ने सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि रु. 400 से बढ़ाकर रु. 1100 करने की घोषणा की है, जो आंदोलन की एक उपलब्धि है, परंतु यह अब भी बेहद अपर्याप्त है। अन्य राज्यों में महिलाओं को रु. 4000 तक की मासिक पेंशन दी जा रही है। हमारी मांग थी कि यह राशि न्यूनतम रु. 1500 की जाए, लेकिन सरकार ने केवल रु. 1100 तक ही सीमित रखा।

मीना तिवारी ने यह भी कहा कि माइक्रोफाइनेंस कंपनियाँ महिलाओं की आर्थिक बर्बादी का कारण बन चुकी हैं। लाखों परिवार भयानक गरीबी में जीवन जीने को मजबूर हैं। सरकार द्वारा किया गया महिला सशक्तिकरण का दावा केवल दिखावा है।

विधान परिषद सदस्य शशि यादव ने कहा कि सरकार ने स्कीम वर्कर्स के साथ गंभीर अन्याय किया है। महागठबंधन सरकार के समय आशा कार्यकर्ताओं को रु. 2500 मासिक देने की जो घोषणा की गई थी, उसे आज तक लागू नहीं किया गया है।

सरोज चौबे ने मध्याह्न भोजन रसोइयों की मांगों को उठाते हुए कहा कि उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय है। उन्हें मात्र रु.1650 मासिक मानदेय मिलता है, वह भी केवल साल के 10 महीनों के लिए। यह कहां का न्याय है?

बिहार महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष मंजू प्रकाश ने कहा कि भाजपा-नीतीश सरकार में महिला आयोग को लगातार निष्प्रभावी बनाकर रखा गया। हालिया नियुक्तियों में भी अयोग्य और राजनीतिक रूप से लाभार्थी व्यक्तियों को जगह दी गई है, जिससे आयोग की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़े हो गए हैं।

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