जब वोट चोरी के मुद्दे को ले कर विपक्ष चुनाव आयोग और सरकार पर हमलावर है और सरकारी संस्थान के दुरूपयोग का आरोप लगा रहा है, ठीक उसी समय सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग के आरोप से घिरी केंद्र की मोदी सरकार ने संसद में 20 अगस्त को संविधान का 130वां संशोधन विधेयक पेश किया. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे पेश किया. लेकिन विपक्ष के विरोध और हंगामे के बाद इस विधेयक को एक संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया है.

इस विधेयक के लिए संविधान के अनुच्छेद 75 में संशोधन होगा, जो मुख्य रूप से प्रधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद की नियुक्ति और जिम्मेदारियों से संबंधित है.
विधेयक के अनुसार, “किसी मंत्री को जो तीस दिनों तक जेल में रहा हो और ऐसे आरोप में गिरफ्तार हुआ हो जिसकी सजा पांच साल या उससे अधिक है, उसे अपने पद से इस्तीफा देना होगा. संबंधित मंत्री को 31वें दिन तक मुख्यमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा पद से हटा दिया जाएगा. यदि ऐसे मंत्री को हटाने के लिए मुख्यमंत्री की सलाह 31वें दिन तक राष्ट्रपति को नहीं दी जाती है, तो वह उसके बाद आने वाले दिन से मंत्री नहीं रहेगा.”
दरअसल उपराष्ट्रपति चुनाव निकट है और खबरों के अनुसार चंद्रबाबू नायडू का रुख बदलता दिखाई दे रहा है. राहुल गांधी और नायडू की नजदीकी ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है. जिसकी वजह से बीजेपी दबाव की राजनीति कर रही है. कथित तौर पर यह बिल विपक्ष और सहयोगी दलों के नेताओं को पुराने मामलों में सजा या जांच की धमकी देकर अपने पाले में करने की रणनीति का हिस्सा है ताकि चुनाव बिना किसी बाधा के सरकार के पक्ष में सुनिश्चित हो सके.
देश का संवैधानिक सिद्धांत कहता है कि कोई भी इंसान तब तक दोषी नहीं माना जाता है, जब तक उसके खिलाफ पुख्ता सबूत ना हो और न्यायालय ने उसे दोषी ना पाया हो. लेकिन 130वां संविधान संशोधन विधेयक के मुताबिक राज्यों से लेकर केंद्र के किसी भी मंत्री को ऐसे किसी आपराधिक मामले में जिसमें 5 साल की सजा हो सकती है और वो मंत्री 30 दिनों तक जेल में रह गए तो उनको उनके पद से हटा दिया जाएगा चाहे वो दोषी हो या निर्दोष. यदि कोई मुख्यमंत्री 30 दिनों तक जेल में रहता है, तो 31 वें दिन उसे खुद इस्तीफा देना होगा वर्ना उसका पद खुद समाप्त हो जाएगा. राज्यों के साथ-साथ ये प्रावधान जम्मू कश्मीर समेत केंद्र शासित प्रदेशों पर भी लागू होगा. यह बिल न्याय के मूल सिद्धांतों के बिल्कुल खिलाफ है. राहुल गांधी ने भी इसे मध्यकालीन युग की वापसी करार दिया है. जहां शासक अपनी मर्जी से किसी को भी पद से हटा दिया करता था.
सबसे अहम बात यह है कि विपक्षी नेताओं पर तमाम बड़े इल्ज़ाम लगा कर उन्हें जेल भेजना सत्ताधारी सरकार का पुराना तरीका रहा है. आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन समेत तेलंगाना की नेता के. कविता गिरफ्तारी के ताजा उदाहरण हैं. विपक्ष ने आरोप लगाया है कि विधेयक पारित होने से सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल कर बीजेपी विपक्ष को खत्म करने की कोशिश कर रही है और इससे गैर बीजेपी राज्यों के सरकारों को अपदस्थ करने का सिलसिला झूठे मुकदमों के सहारे चल पड़ेगा.
सनद रहे, बीजेपी के कई सांसदों पर भ्रष्टाचार और शोषण के गंभीर आरोप हैं. जिसकी फाइलें सत्ताधारी सरकार के पास ही होंगी. ये बिल उन नेताओं को दबाव में लाकर उन्हें सत्ता पक्ष में साथ बनाए रखने का औजार का काम करेगा.
सरकार इस बिल के जरिए खुद को ईमानदार और पारदर्शी साबित करना चाहती है. पर इसके पीछे की रणनीति उतनी ही साजिशपूर्ण है. विपक्षी दलों का कहना है कि 130 वां संशोधन विधेयक भारत में लोकतंत्र को हमेशा के लिए खत्म कर देगा. इस बिल का असली मकसद विरोधियों को जेल भेजना और राज्यों में गैर भाजपा सरकारों को गिराना है.
इस विधेयक का AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस की रेणुका चौधरी, केसी वेणुगोपाल, मनीष तिवारी, और समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव समेत कई नेताओं ने कड़ा विरोध किया. उनका कहना है कि यह बिल नियमों के खिलाफ, बिना समय पर नोटिस और प्रतियां बांटे सदन में पेश किया गया है. अगर विपक्ष और देश की जागरूक जनता ने अभी आवाज नहीं उठाई तो यह लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकता है. केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा कि लोकतंत्र का अर्थ केवल चुनाव नहीं है बल्कि उसमें सत्ता का संतुलन और संस्थागत स्वतंत्रता भी शामिल है. लेकिन आज सत्ता का केंद्रीकरण जिस तरीके से बढ़ रहा है, उससे राज्यों की भूमिका और अधिकार लगातार कम होते जा रहे हैं. उन्होंने बीजेपी और आरएसएस पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि यह संशोधन भारतीय लोकतंत्र को ‘हिंदू राष्ट्र’ की ओर मोड़ने की कोशिश का हिस्सा है, जहां सारी शक्तियाँ केंद्र और खास विचारधारा के अधीन होंगी.
अंततः इस बिल का इस्तेमाल सत्ता के केंद्रीकरण और विपक्ष को कुचलने की दिशा में किया जाएगा. भाजपा ने इस बिल को लोकतंत्र को कमज़ोर करने के लिए लागू किया है. सत्ता में चाहे किसी की भी सरकार हो सत्ताधारी दल अपने राजनीतिक लाभ, स्वार्थ और प्रतिद्वंदता के चलते इस कानून का इस्तेमाल दुरुपयोग के रूप में ही करेंगे.