जस्टिस गवई दूसरे दलित और पहले बौद्ध CJI होंगे

संजीव खन्ना के बाद अब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश होंगे जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ( बी आर गवई)। जस्टिस गवई दलित समुदाय से भारत के सीजेआई बनने वाले केवल दूसरे व्यक्ति होंगे। इससे पहले 2007 में जस्टिस के. जी. बालकृष्णन पहले दलित मुख्य न्यायाधीश बने थे। जस्टिस गवई का कार्यकाल छह महीने का होगा, जो 23 नवंबर को समाप्त होगा।

24 नवंबर, 1960 को जन्मे जस्टिस गवई तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई, जिन्हें उनके अनुयायी “दादासाहेब” कहते थे, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) के संस्थापक थे। वह अमरावती से लोकसभा सांसद रहे और 2006 से 2011 तक बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल रहे। इनकी मां शिक्षक रही हैं और इनकी परवरिश का श्रेय उन्हें ही जाता है। आज भी महाराष्ट्र में इनके घर की दीवारों पर चारो तरफ अंबेडकर की तस्वीरे लगी हुई हैं।

अंबेडकर के सपनों के लिए चुना न्यायिक सेवा

उनके पिता ने 1956 में बाबा साहब के बौद्ध धर्मान्तरण आन्दोलन के दौरान हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया था। जस्टिस गवई ने अपने पिता के आह्वान पर न्यायिक सेवा को चुना, ताकि वे अंबेडकर के सपनों को साकार कर सकें। जस्टिस गवई अपने अंबेडकरवादी विचारों के लिए जाने जाते हैं। कई बार मंचों से भी वो इसपर बोल कर चुके हैं।

नागपुर विश्वविद्यालय से बीए, एलएलबी की पढ़ाई पूरी करने के बाद जस्टिस गवई ने 16 मार्च, 1985 को वकालत शुरू की। उन्होंने महाराष्ट्र के पूर्व एडवोकेट जनरल और बॉम्बे हाई कोर्ट के जज राजा एस. भोंसले के साथ अपने करियर की शुरुआत की। 1987 से 1990 तक उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में स्वतंत्र प्रैक्टिस की और फिर नागपुर बेंच में संवैधानिक और प्रशासनिक कानून के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई। 14 नवंबर, 2003 को वे बॉम्बे हाई कोर्ट के अतिरिक्त जज बने और 12 नवंबर, 2005 को स्थायी जज। 24 मई, 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया।

तीस्ता सीतलवाड़ और मणिपुर के लोगों के लिए दिखाई मानवीय संवेदना

जुलाई 2023 की एक शनिवार की रात, जब अधिकांश लोग अपने सप्ताहांत का आनंद ले रहे थे, जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई एक सांस्कृतिक कार्यक्रम से सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। मकसद? सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को तत्काल गिरफ्तारी से बचाना। 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े एक मामले में तीस्ता पर सबूतों के साथ छेड़छाड़ का आरोप था। जस्टिस गवई की अगुवाई वाली बेंच ने देर रात सुनवाई की और सवाल उठाया कि एक सामान्य अपराधी को भी अंतरिम राहत का अधिकार है, तो तीस्ता को क्यों नहीं? इस घटना ने जस्टिस गवई की मानवीय संवेदना और कानून के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को उजागर किया।

जस्टिस गवई न केवल एक कठोर और निष्पक्ष न्यायाधीश हैं, बल्कि एक ऐसे इंसान भी हैं जो सामाजिक न्याय और मानवीय मूल्यों को गहराई से समझते हैं। मणिपुर में लंबे समय से चले आ रहे जातीय संघर्ष के पीड़ितों से मिलने के लिए वे स्वयं राहत शिविरों में गए। वहां उन्होंने पीड़ितों से बात की और उनकी तकलीफों को सुना, जिससे उनकी संवेदनशीलता और जमीनी स्तर पर जुड़ाव का पता चलता है।

जस्टिस गवई के सामने कम नहीं हैं चुनौतियां

मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस गवई का कार्यकाल भले ही छोटा हो, लेकिन उनके सामने कई चुनौतियां हैं। वह ऐसे समय में पदभार ग्रहण कर रहे हैं, जब न्यायपालिका विश्वसनीयता के संकट से जूझ रही है। दो मौजूदा हाई कोर्ट जजों—इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर यादव और पूर्व दिल्ली हाई कोर्ट जज यशवंत वर्मा—के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही की चर्चा है। सीजेआई बनते ही 15 मई को वह वक्फ अधिनियम में विवादास्पद संशोधनों को चुनौती देने वाले महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करेंगे।

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