लोकसभा से वक्फ बोर्ड संशोधन पास होने के बाद माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा है कि वक़्फ़ बोर्ड मुस्लिमों की तक़रीबन सारी दान में दी गई ज़मीन और धार्मिक -सांस्कृतिक जगहों से जुड़े मामलों को देखता है. इस नए बदलाव से ऐसी सभी जमीनों, संपत्तियों और संस्थानों का रजिस्ट्रेशन ज़रूरी होगा, और इससे जुड़े हर विवाद या मुक़दमे का फ़ैसला राज्य के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाएगा. यक़ीनन, ये मुस्लिम पहचान, धार्मिक आजादी और संस्कृति पर सीधा हमला है.
मोदी सरकार मुस्लिमों को निशाना बनाने के लिए नए-नए हथकंडे अपना रही है. इससे संविधान कमजोर हो रहा है, लोकतंत्र की नींव खोखली हो रही है और सबके हक-अजादी खतरे में हैं. नागरिकता क़ानून (सीएए) के ज़रिए मुस्लिमों को बाक़ी लोगों से अलग किया गया, जो संविधान के बुनियादी उसूल के खिलाफ़ था कि धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं होगा. फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) के बहाने मुस्लिम समाज को निशाने पर लिया गया. उत्तराखंड में यूसीसी लागू हो गया है, जो अलग-अलग धर्मों और जातियों के बीच शादी और बड़े होकर अपनी मर्जी से लिव-इन में रहने की आजादी पर बड़ा हमला है.
अंबेडकर के नज़रिए में एक लोकतांत्रिक जनतंत्र के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकार बेहद अहम थे. जदयू और तेलुगु देशम जैसी पार्टियां, जिन्होंने अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमले में भाजपा का साथ दिया है, इस संविधान-विरोधी साज़िश में शामिल हैं. अब उनकी असलियत सबके सामने आ गई है और जनता उनसे हिसाब मांगेगी.