भारत के शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक में गिरावट

पिछले एक दशक में देश भर के विश्वविद्यालयों ने जबरदस्त दक्षिणपंथी हमले झेले हैं।अकादमिक स्वतंत्रता को भरपूर नियंत्रित करने की कोशिश की गई है। सत्ता के विपरीत विचार रखने वाले शिक्षकों विद्यार्थीयों के उपर मुकदमे किए गए हैं, उन्हें जेलो में डाला गया है। स्वतंत्र अकादमिक आवाज़ों को कुचलने के भरसक प्रयास किए गए हैं।

स्कॉलर्स एट रिस्क ने अपने वार्षिक रिपोर्ट 2024 में कई देशों में शैक्षणिक स्वतंत्रता को ले कर अध्य्यन किया है जिसमें भारत भी शामिल है। पिछले दस सालों में शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक में भारी गिरावट आई है।2013 में, AFi(Academic Freedom Index)ने देश को “पूरी तरह से स्वतंत्र” (0.62) का दर्जा दिया था। 2022 तक, देश की रेटिंग गिरकर “अधिकतर प्रतिबंधित” (0.29) हो गई थी, और 2023 में, देश को “पूरी तरह से प्रतिबंधित” (0.18) का दर्जा दिया गया था।

स्कॉलर्स एट रिस्क (SAR) दुनिया भर के 665 विश्वविद्यालयों का नेटवर्क है, जिसमें कोलंबिया विश्वविद्यालय, ड्यूक विश्वविद्यालय और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय शामिल हैं।SAR का उद्देश्य उच्च शिक्षा पर हमलों की जांच और रिपोर्टिंग करना है, जिससे विद्वानों, छात्रों और शैक्षणिक समुदायों के लिए सुरक्षा बढ़ाई जा सके।

यह रिपोर्ट पांच संकेतकों पर आधारित है:

शोध और अध्यापन की स्वतंत्रता,अकादमिक आदान-प्रदान और प्रसार की स्वतंत्रता,संस्थागत स्वायत्तता,परिसर की अखंडता,अकादमिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।

रिपोर्ट में भारत, अफ़गानिस्तान, चीन, कोलंबिया, जर्मनी, हांगकांग, ईरान, इज़राइल, निकारागुआ, नाइजीरिया, अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्र, रूस, तुर्किये, सूडान, यूक्रेन, यूके और अमेरिका पर विस्तृत रूप से नज़र डाली गई है, जबकि 1 जुलाई, 2023 से 30 जून, 2024 के बीच 51 देशों में उच्च शिक्षा समुदायों पर 391 हमलों का दस्तावेजीकरण किया गया है।

रिपोर्ट में जेएनयू की प्रोफेसर निवेदिता मेनन का भी जिक्र है, जिनके साथ 12 मार्च, 2024 को एबीवीपी से जुड़े छात्रों ने बदसलूकी की। आईआईटी, बॉम्बे में अचिन वानाइक की एक वार्ता को रद्द करने का मामला भी प्रमुखता से रखा गया है, जिसमें इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के इतिहास पर चर्चा होनी थी। एक दशक तक जेल में बिताने के बाद बरी हुए दिल्ली युनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर जी एन साईबाबा का भी जिक्र रिपोर्ट में किया गया है।दिसंबर 2023 में देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रों के आंदोलनों को रोकने के लिए आंदोलन करने पर जुर्माना लगाने के आदेश लाए गए। जेएनयू में दीवारों पर पोस्टर चस्पा करने पर भी रोक लगाने के लिए जुर्माने का आदेश लाया गया था।जिससे छात्रों की अभिव्यक्ति और सक्रियता कमजोर हो रही है।

स्कॉलर्स एट रिस्क ने रिपोर्ट में शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक में गिरावट के कारणों को चिन्हित करते हुए कहा है कि विश्वविद्यालयों पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी द्वारा नियंत्रण करने की कोशिश तथा हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडा थोपने के कोशिश ने अकादमिक स्वतंत्रता को सीमित कर दिया है।

रिपोर्ट में भारत में भी इन तारीखों के बीच हुए उच्च शिक्षा समुदाय पर हमले का जिक्र किया गया है। लेकिन यह हमला 2014 के बाद से ही शुरू है।2014 के बाद से देश के कैंपसों में हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडा थोपने या सीधे अर्थों में कहे तो भगवाकरण करने के प्रयासों के दरमियान कई नीतियों ने शैक्षणिक स्वतन्त्रता को सीमित किया है।

रिपोर्ट में अकादमिक स्वतन्त्रता के लिए जिन चार खतरों को चिन्हित किया गया है।राजनीतिक नियंत्रण,विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिबंध,केंद्र बनाम राज्य सरकार संघर्ष,विद्वानों को भयभीत करना है।

अभी हाल ही में बीचयू में IIT छात्रा के साथ हुए बालात्कार के खिलाफ आंदोलनों में शामिल बीचयू के छात्रों को विश्वविद्यालय से निलंबित कर दिया गया है। आईआईटी की छात्रा के साथ रेप के आरोपित भाजपा के आईटी सेल से जुड़े लड़के थें। उनके जमानत के बाद उनका स्वागत फूल माला से किया गया, जिसकी खूब आलोचना हुई।मई

2022 में लखनऊ विश्वविद्यालय के दलित प्रोफ़ेसर रविकांत पर दक्षिणपंथी छात्रों ने टीवी डिबेट में काशी विश्वनाथ मंदिर पर अपना पक्ष रखने के वजह से बदतमीजी तथा मारपीट की थीं।

केंद्र बनाम राज्य सरकारों के संघर्ष में उच्च शिक्षा पर नियंत्रण को लेकर स्पष्ट विवाद दिखाई देता है, विशेषकर केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे गैर-भाजपा शासित राज्यों में।केरल में, राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और राज्य सरकार के बीच विश्वविद्यालयों के मामलों पर टकराव देखा गया है। उन्होंने विश्वविद्यालय से जुड़े विधायी संशोधनों पर सहमति रोक दी थी। इसके बाद, अप्रैल 2024 में केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी।