जातिवार जनगणना एक सामाजिक जरूरत है, एक राजनीतिक जरूरत है। यह दलित,आदिवासी तथा ओबीसी के लिए नहीं है ।यह भारत नाम के राष्ट्र राज्य के लिए है। यह संवैधानिकता की रक्षा के लिए है।
उक्त बातें कही गई तब मौका था पटना विश्वविद्यालय के छात्रों से संवाद का ,स्थान था पटना कॉलेज का प्रेमचंद सभागार और वक्ता थें वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिंतक उर्मिलेश।जाति जनगणना कितना जरूरी? कितना गैर जरूरी? शीर्षक से आयोजित इस संवाद में उर्मिलेश ने जातिय जनगणना से जुड़ी कई अहम पहलुओं पर प्रकाश डाला। जातिय जनगणना की जरूरत और समाज के प्रगति में जातिय जनगणना के पड़ने वाले प्रभाव को भी समझाया
उर्मिलेश ने अपने वक्तव्य में कहा कि अक्सर यह बात प्रचारित की जाती रही है कि जाति सर्वे करने वाला बिहार पहला राज्य है जबकि यह बात सरासर गलत है। जाती सर्वे करने वाला बिहार पहला नहीं तीसरा राज्य है। इसके पहले कर्नाटक में जाति सर्वे हुआ हालांकि वह सर्वे सार्वजनिक नहीं हो पाया और उसके भी पहले देश में पहला जाती सर्वे 1968 -69 में केरल में किया गया । तब वहां नंबूदरीपाद के नेतृत्व में कम्यूनिस्ट सरकार थी। वहां गठित पहली सरकार को डिसमिस कर दिया गया था लेकिन उस सरकार ने भूमि सुधार और समान शिक्षा सुधार नामक दो जो बड़े सुधार किये उन्होंने केरल में विकास की एक इबारत खड़ी की। गौरतलब है कि केरल में जो यह बड़े सुधार संभव हुए वहां के नेता जमींदार कुलीन पृष्ठभूमि से आते थे।जातिय जनगणना सिर्फ आरक्षित वर्ग का या उनके प्रगति का एजेंडा नहीं है, यह राष्ट्रीय प्रगति का एजेंडा है यह नेशनल एजेंडा है।यह विकास का डेमोक्रेटिक एजेंडा है। किन लोगों का कितने संसाधानों पर कब्जा है इसके आंकड़े आने चहिए। भारतीय मीडिया के चरित्र पर सवालों के जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि इसपर आज भी कुलीन तथा तथाकथित उच्च जातियों का कब्जा है। उन्होंने मेलबर्न यूनीवर्सिटी के प्रोफ़ेसर रॉबिन जेफ्री की किताब इण्डिया न्यूज पेपर रिवोल्यूशन का जिक्र करते हुए कहा कि जेफ्री इस बात को ले कर अपनी किताब में आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि भारत के राष्ट्रपति एक दलित थें लेकिन पुरे भारतीय मिडिया में ढूंढने पर भी एक भी दलित संपादक जेफ्री को नहीं मिला। कमोबेश आज भी स्थिति बहुत बदली नहीं है।
उन्होंने आगे कहा कि केंद्र की सरकार टीडीपी और जदयू की कृपा पर टिकी है लेकिन वह आज तक जाति सर्वे को 9वीं अनुसूची में नहीं डाल पाई। आरएसएस कभी नही चाहेगा कि जातिय जनगणना हो
पटना विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग के अतिथि शिक्षक आशुतोष ने विषय प्रवेश करते हुए जाति जनगणना के सवाल को बेहद महत्वपूर्ण माना।पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के शशिकांत पासवान ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि जाति जनगणना का सवाल बेहद महत्वपूर्ण है। समाज के कुलक वर्गों ने इसके विरुद्ध जो हवा तैयार की है उसे समझने की जरूरत है ।
शशि प्रभा ने भी इस मौके पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि जाति जनगणना, आरक्षण आदि मुद्दों को जब तक एड्रेस नहीं किया जाएगा बहुजन समाज का कल्याण संभव नहीं है।
कार्यक्रम की शुरुआत में लेखक अरुण नारायण ने आगत अतिथियों का स्वागत किया और उर्मिलेश जी की शख्सियत से जुड़े विभिन्न पहलुओं को रेखांकित किया।सोशल जस्टिस आर्मी एवं रिसर्च स्कॉलर संगठन द्वारा आयोजित इस सभा का संचालन गौतम आनंद और धन्यवाद ज्ञापन शाश्वत ने किया ।