1 सितंबर 2024 को पटना के आईएमए हॉल में बिहार भर के विश्वविद्यालय शिक्षकों ने बिहार प्रोग्रेसिव यूनिवर्सिटी शिक्षक एसोसिएशन(बीपुटा)नामक संगठन की स्थापन की। स्थपना सम्मेलन में पटना, पाटलिपुत्रा, मगध, वीर कुंवर सिंह, एलएनएमयू सहित कई विश्वविद्यालय के शिक्षक शमिल हुए।
स्थापना सम्मेलन से भाकपा–माले विधायक संदीप सौरभ को संगठन का प्रमुख संरक्षक चुना गया. पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हेमंत कुमार झा को संगठन का अध्यक्ष तथा वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रो. चिंटू को सचिव चुना गया. मुजफ्फरपुर से आतिफ रब्बानी उपाध्यक्ष, बेगूसराय से अभिषेक कुंदन सहसचिव तथा साइंस कॉलेज के प्रोफेसर शोभन चक्रवर्ती कोषाध्यक्ष चुने गए.
21 सदस्यों की राज्य कार्यकारिणी में उक्त पदाधिकारियों के अलावा आकाश कुमार, रेणु चौधरी, रहमत युनुस, दिव्यानंद, जितेन्द्र कुमार, हुमायुं अख्तर, अजेय कुमार, पवन कुमार प्रभाकर, शशिकांत प्रसाद, नौशाद आलम, रविरंजन, सुशांत और रंजना यादव चुने गए. स्थापना सम्मेलन में एएनसिन्हा इंस्टीट्यूट के प्रो. विद्यार्थी विकास, प्रो. सतीश कुमार, डॉ. डीएन चौधरी सहित कई लोग उपस्थित थे.
माले विधायक संदीप सौरभ ने कहा कि उच्च शिक्षा की बदहाल स्थिति, प्रशासन की मनमानी, शिक्षकों की अधिकारहीनता जैसी स्थिति के मद्देनजर संगठन की स्थापना की जा रही है. हमारी कोशिश है कि विश्वविद्यालयों में जो जड़ता है वह टूटे और पठन-पाठन का माहौल बने. यह सब हमलोगों की सामूहिक कोशिशों से ही संभव है.
उन्होंने कहा कि विधायक रहते हुए विधानसभा के भीतर शिक्षकों की समस्याओं को लगातार उठाया गया है, लेकिन जड़ता इतना गंभीर है कि लगातार महसूस हो रहा था कि एक कारगर शिक्षक संगठन के बिना बहुत कुछ संभव नहीं है. नए शिक्षक जो बड़ी उम्मीदों के साथ बिहार आए थे वे खराब शैक्षणिक स्थितियों के कारण गंभीर निराशा का सामना कर रहे हैं. महिला शिक्षिकाओं के साथ कई गंभीर समस्याएं हैं. और सबसे बढ़कर सरकार द्वारा उच्च शिक्षा पर 2.17 प्रतिशत राशि खर्च करने के बावजूद शिक्षा की स्थिति लगातार बद से बदतर होती जा रही है. यह बहुत चिंजानजक है. पुराने शिक्षक संगठन लगभग निष्क्रिय पड़ चुके हैं. ऐसे में बीपूटा शिक्षा की बदहाल स्थिति में बदलाव का वाहक बनेगा. हमें उम्मीद है कि हम सब मिलकर इस चुनौतीपूर्ण स्थिति को बदलने में कामयाब होंगे.
सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों ने कहा कि विश्वविद्यालय व कॉलेज प्रशासन की मनमानी, कुलपति नियुक्ति में मानकों का उल्लंघन, कैंपसों का अलोकतांत्रिक चरित्र, महिला शिक्षिकाओं के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराने, मातृत्व अवकाश की असुविधा, ध्वस्त आधारभूत की खस्ताहालत आदि स्थिति शिक्षकों को परेशान करने वाली है. शिक्षकों पर तरह-तरह से नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश हो रही है. यह असहनीय स्थिति है.
अधिकांश शिक्षकों ने राज्य की गिरती शिक्षा व्यवस्था पर गहरा क्षोभ व्यक्त किया. सबने इस स्थिति में एक सकारात्मक हस्तक्षेप के उपकरण के बतौर शिक्षक संगठन के निर्माण पर जोर ओदिया. डॉ. विद्यार्थी विकास ने विस्तार से केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा शिक्षा को बर्बाद किए जाने की प्रक्रिया पर अपने विचार रखे.
Well done!
Hum sab saath saath hain.