बाल तस्करी के बढ़ते आंकड़े,चिन्हित कारणों के बावजूद चिंता के कारण क्यों नहीं?

मानव तस्करी की सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत परिभाषा संयुक्त राष्ट्र द्वारा दी जाती है .हालाँकि अवैध व्यापार की परिभाषाएँ व्यवहार में भिन्न होती हैं| महिलाओं, बच्चों और पुरुषों का श्रम और यौन शोषण के लिए कई अलग-अलग रूपों में अवैध व्यापार किया जाता है। बाल तस्करी का सम्बन्ध जबरन श्रम और यौन शोषण से है । सेव द चिल्ड्रेन’ के अनुसार दुनिया भर में मानव तस्करी के सभी पीड़ितों में से 27% बच्चे हैं और हर तीन में से दो बाल पीड़ित लड़कियां हैं। जिन्हें पर्याप्त भोजन, आश्रय के बिना गुलाम जैसी परिस्थितियों में रखा जाता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

संयुक्त राष्ट्र कार्यालय कि ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) रिपोर्ट (2009) के अनुसार, मानव तस्करी का सबसे आम रूप (79%) यौन शोषण है। यौन शोषण का शिकार मुख्य रूप से महिलाएं और लड़कियां होती हैं। दुनिया के कुछ हिस्सों में महिलाओं की तस्करी आम बात है। मानव तस्करी का दूसरा सबसे आम रूप जबरन श्रम (18%) है| यद्यपि अवैध व्यापार का अर्थ लोगों को महाद्वीपों में स्थानांतरित करना प्रतीत होता है, अधिकांश शोषण घर के निकट होता है।

दुनिया सहित भारत में पिछले दो सालों में कोरोना महामारी के चलते देश में न सिर्फ स्वास्थ्य सेवाओं की समस्या उभरी है बल्कि आर्थिक वृद्धि सहित कई अन्य दुविधाएं उभर कर सामने आई है| बाल तस्करी के बढ़ते मामले इन्हीं में से एक है | कोरोना महामारी के दौरान देश भर में बाल तस्करी की बहुत खबरे आई|

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 (1) के तहत मानव तस्करी और जबरन श्रम निषिद्ध है और कानून के अनुसार दंडनीय अपराध है। इसके बावजूद इसमें लगातार वृद्धि हो रही है| भारत के कुछ बड़े राज्यों में कुछ खास जगहों में समस्या बेहद आम होती जा रही है| जिनमें राजस्थान, केरल, बिहार, उड़ीसा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल और राजधानी दिल्ली प्रमुख है| जिसमें मुख्य वजह गरीबी और अशिक्षा है, जो कोरोना के दौरान परिवारों को मजबूर कर रहे थे पैसों के लिए अपने बच्चों को, काम और बेगारी पर खुद से दूर भेजने के लिए|

2023-24 NCRB डाटा अभी नहीं आया है लेकिन पहले की स्तिथि देखें तो NCRB के पिछले पांच साल के आंकड़ों में पाएंगे कि इसमें काफी वृद्धि हुई है|

पिछले पांच वर्षों के दौरान बचाए गए बाल तस्करी से पीड़ितों (18 वर्ष से कम) की संख्या है:

इस दौरान वर्ष 2022 में कुल 83,350 बच्चे (20,380 पुरुष, 62,946 महिला और 24 ट्रांसजेंडर) लापता बताए गए। वर्ष 2021 में लापता हुए 77,535 बच्चों की तुलना में वर्ष 2022 में लापता बच्चों की संख्या में 7.5% की वृद्धि हुई है। वर्ष 2022 के दौरान कुल 80,561 बच्चे (20,254 पुरुष, 60,281 महिला और 26 ट्रांसजेंडर) पता लगाए गए। ये संभावना जताई जा सकती है कि इनमें से बहुत से बच्चे बाल तस्करी का शिकार हुए होंगे|

‘Child Trafficking in India: Insights from Situational Data Analysis and the Need for Tech-driven Intervention Strategies’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश को 2016 और 2022 के बीच सबसे अधिक बच्चों की तस्करी वाले शीर्ष तीन राज्यों के रूप में पहचाना गया है।

राजस्थान: राष्ट्रीय बाल तस्करी चार्ट में राजस्थान भी है, जिससे अपराध प्रवृत्ति पर सरकारी आंकड़ों का पता चलता है। 24 अगस्त, 2021 को बाल तस्करी पर राजस्थान से विरोधाभासी रिपोर्टों पर एनएचआरसी ने गंभीरता दिखाते हुए अन्य सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से रिपोर्ट मांगी थी|[3] आज भी यहाँ गरीबी और बेरोजगारी, बाल तस्करी का अहम मुद्दा बना हुआ है | कम मजदूरी में सबसे अधिक बच्चे फैक्टरियों के काम में लगाये जा रहे है| जिसमें देश के अन्य गरीब राज्यों भी बच्चो कि तस्करी शमिल है|

केरल: 2020 में तस्करी के मामले में एक संपन्न राज्य होने के बावजूद केरल दूसरे स्थान पर रहा| केरल में अन्य राज्यों से गरीब बच्चों को या तो सस्ते मजदूरी के नाम पर यहाँ लाया जाता है| इसकी एक खास बात यह भी रही है कि यहाँ NGO या अनाथालयों में बच्ची को रखने के लिए उनकी तस्करी दूसरे राज्यों से कि जा रही है| 2021 में एक खबर के अनुसार NGO में काम करने वाला एक व्यक्ति बल तस्करी के लिए गिरफ्तार किया गया|[4] ऐसा ही एक मामला 2014 में भी सामने आया था, जब पुलिस और पलक्कड़ जिले के अधिकारियों ने अनाथालयों में भेजने के बहाने बिहार और झारखंड से राज्य में लाए जा रहे लगभग 600 बच्चों को बचाया।

बिहार: बिहार के गरीब और बाढ़ ग्रस्त जिले बाल तस्करी से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं| जिसमें कोविड लॉकडाउन ने बढ़ोतरी कि है| इस दौरान बेरोजगारी और गरीबी के चलते अपने बच्चों को बाल तस्करी में भेजने के लिए लोग मजबूर हुए| वही दूसरी ओर सरकारी स्कूल बंद होने से भी इसपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा जो कि
मिड डे मील का सबसे बड़ा स्रोत है|

बिहार में ,जून, 2023 में रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) और राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) के अधिकारियों ने बिहार के कुल 59 बच्चों में से 30 को कथित तौर पर इस संदेह पर बचाया था कि उन्हें बाल श्रम के लिए बिहार से महाराष्ट्र ले जाया जा रहा था।[6] जुलाई – अगस्त 2021 में तस्करों के चंगुल से 26 बच्चे छुड़ाए गए| दूसरी ओर आरपीएफ और अन्य द्वारा 2020 में 313 बच्चों को ट्रेनों से और 2021 में अगस्त तक 426 से अधिक बच्चों को बचाया गया।[7] वही 2020 जुलाई से अगस्त तक जयपुर में बिहार के 4 बाल श्रमिकों की मौत का मामला सामने आया है|जुलाई से सितंबर 2020 के बीच बिहार के करीब 250 बच्चों को बाल तस्करी से छुड़ाया गया है|

उड़ीसा: कोरोनवायरस महामारी के बीच ओडिशा में बाल तस्करी में तेजी देखी गई है| विशेष रूप से राज्य के आदिवासी बहुल जिलों में जिसमें चाइल्डलाइन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (सीएफआई) के कार्यकर्ताओं द्वारा गंजम जिले के बरहामपुर रेलवे स्टेशन से 29 जुलाई से 9 अगस्त, 2021 तक कम से कम 20 किशोरों को बचाया गया है जिनमें ज्यादातर लड़कियां (18) शामिल थी|जुलाई, 2021 में CWC और पुलिस ने बाल अपहरण के आरोप में राउरकेला से पांच महिलाओं और दो पुरुषों की गिरफ्तारी किया| जो पैसो के लिए गरीबों के बच्चों को दूसरे राज्यों में बेचने का काम करते थे.

झारखण्ड: रांची, 24 फरवरी 2022 को झारखंड के साहिबगंज और गोड्डा जिलों से कथित रूप से तस्करी कर लाए गए पांच लड़कियों और एक लड़के को दिल्ली से मुक्त कराया गया है।[12] झारखंड पुलिस की मानव तस्करी रोधी इकाई ने जनवरी, 2021 में रांची हवाईअड्डे से 7 नाबालिग लड़कियों को बचाया| राज्य सरकार का एकीकृत पुनर्वास और संसाधन केंद्र (IRRC) 2019 से 2020 तक 500 से अधिक तस्करी किए गए बच्चों को बचाया गया| उड़ीसा की तहर ही झारखण्ड भी आदिवासी इलाकों से बच्चो की तस्करी में आगे है| जिसपर आये दिन खबरे आती रहती है| गरीबी के कारण यहाँ से परवर आसानी से तस्करों के चंगुल में आ जाते है जिसका परिणाम उनको अपने बच्चों को दूर शहर में बंधुआ मजदूरी के रूप में झेलना पड़ता है|

इन प्रभावित राज्यों देखें तो पाएंगे कि इनमें कुछ पुराने कारण आज भी इसके लिए जिम्मेदार

डाटा तालमेल में कमी; पिछले पांच साल का डाटा देखा जाये तो राज्यों में राजस्थान, यूपी, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, ओड़िसा, झारखण्ड, केरल और केंद शासित प्रदेशों में दिल्ली लगातार इस मामलेम से सबसे ऊपर है| समस्या बस ये नहीं की ये आंकड़ें इस स्तिथि में है बल्कि ये भी है की ये सब मामले, राज्यों द्वारा दर्ज किये गए आंकड़ें है जो की बहुत से NGO और समाजसेवियों द्वारा आंकड़ों की कमी बताया गया है| उनके अनुसार असल डाटा इनसे कई गुना ज्यादा है|

दूसरा; NCRB हर साल राज्यों द्वारा भेजे गये डाटा को संलगित कर प्रकाशित करता हैं| लेकिन इसमें समस्या ये आती है की राज्यों द्वारा अलग – अलग विभाग बच्चों को रेस्क्यू करते और उनकी तस्करी रोकने के लिए काम करते हैं | जहाँ एक ही विभाग द्वारा साल में सैकड़ों बच्चों को बचाया भी जाता है | जबकि राज्य केवल पुलिस द्वारा दर्ज मामले ही केंद्र तक भेजते है| इन सबका आपसी तालमेल बहुत जरुरी है|

केंद्र और राज्यों द्वारा समस्या का पता होने पर भी ज़मीनी स्तर पर काम अब भी बाकी है; राज्यों और दिल्ली पर नज़र डालेंगे तो पाएंगे कि सभी जगहों पर बाल तस्करी की वजह और सरकार द्वारा समाधान दोनों मौजूद है फिर भी ये आकड़ें लगातार बढ़ रहे है| जैसे, राजस्थान में बच्चों से जबरदस्ती बाल मजदूरी करवाई जाती है, जो मुख्य रूप से गरीब और अशिक्षित परिवारों से आते है| बावजूद उसके उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबी उन्मुलन कार्यों पर सरकार उदासीन दिखाई पड़ती है| जबकि केंद्र से लेकर राज्य स्तर पर ऐसे कई अच्छे उपाय मौजूद है|

वही हाल, बिहार का है जो पिछले कई सालों से इसमें प्रभावित राज्यों में से एक है| कोशी बेल्ट के साथ सबसे गरीब जिलों में बच्चों की तस्करी आम होती जा रही है जहाँ गरीब परिवार अपने बच्चों को बेच देने के लिए विवश है| जिन पर काम करने के बावजूद ये बच्चे बार – बार तस्करी का शिकार हो रहे है|

पिछले पांच सालों में झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, असम में गरीबी, अशिक्षा के अलावा आदिवासी इलाकों के बच्चे ज्यादा प्रभावित हुए है, जिनको इसमें देश के अलग – अलग हिस्सों से बचाया गया है| लेकिन बचाए गए बच्चों की संख्या आज भी काफी कम है| इन जगहों से बच्चियों को बड़े शहरों में या जबरदस्ती घरेलू कामों के लिए इस्तेमाल किया जाता है या फिर औकेस्टरा में अश्लील नाच करवाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसे खुद समाज का एक बड़ा और मजबूत तबका बड़े शौक से स्वीकार करता है|

समाधान के कुछ रास्ते:

भारत में बाल तस्करी पर बने कानून का सख्ती से पालन हो;

● बच्चों को शिक्षा से जोड़ें रखा जाये, मिड डे मील ने गरीब बच्चों को एक सहारा दिया है और कोविड के दौरान स्कूल बंद होने से लाखों बच्चे शिक्षा के साथ पोषण से वंचित रहे;

● राज्य को पंचायत स्तर पर इस मुद्दे को देखने के एक जिम्मेदारी निभानी होगी, जिसमें प्पंचायत अपने गांवों के बच्चों को सुरक्षित रख पाए;

● बाल तस्करी पर काम करने वाले संस्थाओं के बीच बेहतर तालमेल बिठाना चाहिए, ताकि समय रहते ज्यादा से ज्यादा बच्चे इसमें जाने से रोके जा सके|

दिल्ली और केरल का इस लिस्ट में आना हमारे लिए आँख खोलने जैसा है| देश में सबसे समृद्ध होने के बाद भी बच्चे दोनों जगह बराबर रूप से बाल तस्करी का शिकार हो रहे है, जो बहुत बड़े नेटवर्क की ओर भी इशारा करता है| जिसमें बच्चो को न केवल जबरदस्ती बाल मजदूरी को ओर धकेलना हो सकता है बल्कि उनके साथ पोर्नोग्राफी सहित जबरदस्ती सेक्स रैकेट में धकेलना भी हो सकता है|

पूजा कुमारी, स्वतंत्र शोधार्थी

लेखिका पोक्सो एक्ट से जुड़े दो शोध ‘Status Of Cases Under The POCSO Act, 2012 And Dynamics Of Implementation: A Report on Delhi’ का हिस्सा एवं ‘POCSO ACT since 2012, its implementation, impact, and future pathways’ को लीड कर चुकी है|

Email ID: poojarandhirabhimanyu@gmail.co

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